Tuesday, December 4, 2007

आज जाने कि जिद न करो .............

आज मलिका - ए ग़ज़ल पाकिस्तान कि मशहूर ग़ज़ल गायिका फरीदा खानम जी की दो मशहूर ग़ज़लें सुनिए । मुझे तो ये बहुत पसंद है आप को भी ज़रूर पसंद आयेंगी ।


आज जाने कि जिद न करो यूहीं पहलू में बेठे रहो आज जाने कि ज़िद न करो












वो मुझ से हुआ .....












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Wednesday, November 21, 2007

हम तेरे शहर में आये है............

गज़लों कि इस दुनिया में आप का स्वागत है । गज़लों से मेरा नाता बहुत पुराना तो नहीं फिर भी जब भी सुनी हमेशा दिल को एक राहत ही महसूस हुई। बहुत साल पहले कि बात है दशहरे पर में रायपुर गयी थी वहां से वापस आते समय ट्रेन में बहुत भीड़ थी । किसी वजह से जिस दिन मुझे वापस आना था उससे एक दिन पहले ट्रेन कैंसिल हो है थी और एक ही ट्रेन होने की वजह से उसदिन गजब कि भीड़ थी । खैर जैसे तैसे ट्रेन में चढे और एक सीट पर बैठ गए। थोडी ही देर हुई थी कि एक साहब आये और बोले मैडम ये मेरी सीट है अब क्या करते ट्रेन में तो हिलने तक कि जगह नहीं थी और साथ में सामान और मम्मी का साथ । अरे हाँ आप को ये तो बताना ही भूल गए ही हमारे पास टिकट तो थी पर RAC (Reservation Against Cancilation) थी। पर शायद आगंतुक सज्जन व्यक्ति थे और हमारी परेशानी समझ गए थे इस लिए हमें बैठे रहने को कहकर हमारे साथ वो भी उसी सीट पर एडजेस्ट हो गए । थोडी देर बात-चीत के बाद उन्होने अपना walkman निकला और सुनने में व्यस्त हो गए।
थोडी देर बाद जब उन्होंने मुझे बोर होते देखा तो अपना walkman मुझे दे दिया और खुद कोई पत्रिका पढ़ने लगे।
गजलों से यही मेरा पहला परिचय था और गायक थे गजलों के शहंशाह उस्ताद गुलाम अली साहब और वो एलबम था "तेरे शहर में " । आज आपको गुलाम अली साहब की गयी हुई दो गजलें सुनवा रहीं हूँ.........

हम तेरे शहर में आये है मुसाफिर कि तरह .......................










कल चौदहवीं कि रात थी ..............................









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